मुंबई। फिल्म इंडस्ट्री की चकाचौंध भरी दुनिया जितनी बाहर से आकर्षक लगती है, अंदर से उतनी ही स्याह और डरावनी भी है। "कास्टिंग काउच" – ये दो शब्द न जाने कितने सपनों को रौंद चुके हैं। न जाने कितनी लड़कियां और अब तो लड़के भी इसका शिकार बन चुके हैं।
एक वर्ष में 50 से ज्यादा नामचीन फिल्म निर्माताओं पर रेप और यौन शोषण के आरोप लग चुके हैं। यह आंकड़ा किसी सामान्य अपराध दर से कहीं अधिक है, जो फिल्म इंडस्ट्री की अंधेरी गलियों की ओर इशारा करता है।
फिल्मों में मौका देने के बहाने डायरेक्टर्स, कास्टिंग एजेंट्स, और कई बड़े प्रोडक्शन हाउस के लोग उभरते कलाकारों का शारीरिक और मानसिक शोषण करते हैं। अक्सर कहा जाता है कि "बिना समझौते के यहां कोई रोल नहीं मिलता।"
मॉडलिंग से लेकर टीवी सीरियल्स तक, कलाकारों को रोल के बदले ‘फेवर’ मांगने की मांग की जाती है। कई बार तो पीड़ित चुपचाप सहन कर लेते हैं, और कुछ लोग सामने आकर अपने साथ हुए अनुभवों को साझा करते हैं, जिससे MeToo मूवमेंट जैसी लहरें भी उठीं।
बॉलीवुड में कास्टिंग काउच सिर्फ महिलाओं की समस्या नहीं रही, अब पुरुष कलाकार भी बराबर इसका सामना कर रहे हैं। युवा लड़कों को ‘फिजिक’, ‘स्मार्टनेस’ और ‘क्लोज़ रिलेशन’ जैसे बहानों से बुलाया जाता है और उनका शोषण किया जाता है।
कई केस दर्ज हुए, लेकिन बहुत से मामले दबा दिए गए। इंडस्ट्री के अंदर की लॉबी, ताकतवर लोग और अनुबंधों की जंजीरें पीड़ितों की आवाज़ को दबा देती हैं।
कई बार पीड़िता/पीड़ित को काम नहीं मिलने की धमकी दी जाती है। और अगर वे शिकायत करते हैं, तो उन्हें 'ब्लैकलिस्ट' कर दिया जाता है।
फिल्म इंडस्ट्री का यह काला सच अगर अब भी न उजागर किया गया, तो न जाने और कितने सपने टूटते रहेंगे। ज़रूरत है एक स्वतंत्र निगरानी एजेंसी, सख्त कानून, और सोशल अवेयरनेस की, ताकि कास्टिंग काउच जैसे अपराधों पर नकेल कसी जा सके।
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