जयपुर: राजस्थान के चर्चित दुर्लभजी अपहरण कांड की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई, इस हाई-प्रोफाइल केस में चौंकाने वाली परतें खुलती गईं। सुमेधा दुर्लभजी को 6 फरवरी 2003 को जयपुर से अगवा किया गया था। यह केस जितना संगीन था, उतना ही सुनियोजित भी। पुलिस रिकॉर्ड्स और चार्जशीट में सामने आया कि किडनैपिंग गैंग का मास्टरमाइंड एक ऐसा शख्स था, जो कभी लोकसभा चुनाव लड़ चुका था।
पीड़िता सुमेधा को अपहरण के बाद कुल 18 दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया। इस दौरान परिवार से ढाई करोड़ रुपये की फिरौती की मांग की गई।
पुलिस जांच में यह तथ्य सामने आया कि अपहरण करने वाले सिर्फ पेशेवर अपराधी नहीं थे, बल्कि उनमें से एक पूर्व विधायक का बेटा, एक इंजीनियर और एक ऐसा शख्स शामिल था जो राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखता था और लोकसभा चुनाव भी लड़ चुका था।
सुमेधा को अपहरण के बाद चित्तौड़गढ़ और कोटा के बीच अलग-अलग जगहों पर रखा गया। आरोपियों ने अपना ठिकाना बदलने के लिए अलग-अलग इलाकों की योजना पहले ही बना ली थी।
कैसे हुआ पर्दाफाश:
18 दिन की लंबी तलाश के बाद पुलिस को एक मुखबिर से सूचना मिली, जिसके आधार पर एक गुप्त ऑपरेशन चलाकर सुमेधा को सुरक्षित छुड़ाया गया और मास्टरमाइंड समेत सभी आरोपियों को गिरफ्तार किया गया।
पुलिस के लिए चुनौती:
यह केस पुलिस के लिए इसलिए भी चुनौतीपूर्ण था क्योंकि इसमें जुड़े आरोपी समाज के प्रतिष्ठित और शिक्षित वर्ग से थे, जो पहले से आपराधिक रिकॉर्ड नहीं रखते थे।
इस केस का सबक:
यह केस भारत में उन आपराधिक प्रवृत्तियों को उजागर करता है जो केवल पैसा कमाने की लालसा में अच्छे-खासे जीवन और करियर को भी दांव पर लगा देती हैं।
निष्कर्ष:
दुर्लभजी अपहरण कांड राजस्थान की क्राइम हिस्ट्री में एक ऐसा केस बन गया, जिसने साफ दिखाया कि अपराध अब केवल अपराधियों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि समाज के सम्मानित चेहरे भी इसका हिस्सा बनते जा रहे हैं।
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